मोबाइल स्कैम से सुरक्षा 2024: गूगल का चौंकाने वाला खुलासा, Android या iPhone कौन बेहतर?

By Gaurav Srivastava

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अरे दोस्तों, क्या हालचाल? उम्मीद है सब बढ़िया होगा! आज हम एक ऐसे टॉपिक पर बात करने वाले हैं जो हम सबकी रोज़ाना की ज़िंदगी से जुड़ा है और वो है हमारे प्यारे स्मार्टफोंस की सुरक्षा। सोचिए, आपका फोन एक छोटी-सी दुकान से लेकर बैंक तक, सब कुछ बन चुका है। ऐसे में इसकी सिक्योरिटी कितनी ज़रूरी है, है ना?

और जब बात आती है फोन सिक्योरिटी की, तो सबसे पहले दिमाग में आता है Android और iPhone की जंग। कौन ज़्यादा सेफ है? कौन हमें मोबाइल स्कैम से ज़्यादा बचाता है? इसी सवाल का जवाब देने के लिए आज हम कुछ कमाल की बातें करने वाले हैं, खासकर गूगल के नए दावों को लेकर!

लॉन्च डेट और अवेलेबिलिटी

देखिए, किसी भी सिक्योरिटी फीचर की लॉन्च डेट उसके असर को बताती है। हाल ही में, गूगल ने एंड्रॉयड यूजर्स के लिए एआई-पावर्ड स्कैम डिटेक्शन फीचर को रोलआउट किया है। यह एक ऐसा कदम है जो मोबाइल स्कैम को रियल-टाइम में पहचान कर रोकने का काम करता है। यह फीचर लगातार अपडेट्स के साथ यूजर्स तक पहुँच रहा है, जिससे इसकी अवेलेबिलिटी भी बढ़ती जा रही है।

गूगल का कहना है कि यह फीचर एंड्रॉयड के नए वर्ज़न्स के साथ-साथ पुराने कुछ वर्ज़न्स पर भी उपलब्ध है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा यूजर्स इसका फायदा उठा सकें। वहीं, एपल भी अपने आगामी iOS26 अपडेट में ऐसे ही कुछ नए सिक्योरिटी फीचर्स लाने वाला है। इनका लॉन्च और अवेलेबिलिटी भी यूजर्स के लिए बेहद अहम होगी, ताकि Android iPhone सुरक्षा की इस दौड़ में कोई पीछे न रहे।

डिजाइन और डिस्प्ले

जब हम सिक्योरिटी की बात करते हैं तो फोन का “डिजाइन” सिर्फ फिजिकल बनावट तक सीमित नहीं होता। इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम का सुरक्षा “डिजाइन” भी शामिल है। एंड्रॉयड का ओपन-सोर्स नेचर उसे फ्लेक्सिबल बनाता है, लेकिन साथ ही इसे मैलवेयर के लिए एक बड़ा टारगेट भी बना सकता है। गूगल ने अपने सुरक्षा डिजाइन को मजबूत करने के लिए गूगल प्ले प्रोटेक्ट और अन्य सिक्योरिटी लेयर्स को इंटीग्रेट किया है।

स्कैमर्स अक्सर हमारी फोन की “डिस्प्ले” का इस्तेमाल हमें बरगलाने के लिए करते हैं। चाहे वह फेक मैसेज हो, एक फ़िशिंग वेबसाइट का लिंक हो, या एक फ़र्ज़ी ऐप का आइकॉन। गूगल स्कैम डिटेक्शन का डिज़ाइन ऐसा है कि यह इन खतरों को आपके “डिस्प्ले” पर आने से पहले ही या जैसे ही ये दिखते हैं, अलर्ट कर देता है। ये आपको दिखाएगा कि कौन सा कॉल या मैसेज संदिग्ध है। आईफोन का क्लोज्ड इकोसिस्टम एक अलग तरह का सुरक्षा डिज़ाइन देता है, जहां ऐप्स को एप स्टोर से ही इंस्टॉल किया जा सकता है, जिससे मैलवेयर का रिस्क कम होता है।

प्रोसेसर और परफॉर्मेंस

आजकल के स्मार्टफोंस में जो AI-पावर्ड सिक्योरिटी फीचर्स आ रहे हैं, उन्हें चलाने के लिए एक दमदार प्रोसेसर चाहिए होता है। जैसे गूगल का एआई-पावर्ड स्कैम डिटेक्शन फीचर, जो रियल-टाइम में काम करता है। यह आपके फोन के प्रोसेसर का इस्तेमाल करके कॉल्स और मैसेजेस को एनालाइज करता है, ताकि पता चल सके कि कहीं कोई धोखाधड़ी तो नहीं हो रही है।

इस तरह की लगातार चलने वाली सिक्योरिटी स्कैन्स का असर फोन की परफॉर्मेंस पर पड़ सकता है, लेकिन मॉडर्न प्रोसेसर इतने कैपेबल हैं कि वे इन टास्क को बिना फोन को स्लो किए हैंडल कर लेते हैं। एपल के iPhones में भी पावरफुल प्रोसेसर होते हैं जो उनके सिक्योरिटी फीचर्स जैसे फेस आईडी और ऑन-डिवाइस डेटा एन्क्रिप्शन को efficiently चलाते हैं। Android iPhone सुरक्षा के लिए यह ज़रूरी है कि प्रोसेसर न सिर्फ ताकतवर हो, बल्कि एफिशिएंट भी हो ताकि बैटरी लाइफ पर ज़्यादा असर न पड़े।

कैमरा फीचर्स

आप सोच रहे होंगे कि कैमरा फीचर्स का मोबाइल सुरक्षा से क्या लेना-देना? दरअसल, सिक्योरिटी का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राइवेसी है। कई मैलिशियस ऐप्स बिना आपकी परमिशन के आपके फोन के कैमरा और माइक्रोफोन का एक्सेस ले सकते हैं, और यह एक बड़ा प्राइवेसी ब्रीच है। दोनों ही OS, एंड्रॉयड और iOS, अब ऐप्स को कैमरा एक्सेस देने से पहले यूजर्स से परमिशन मांगते हैं, और कई तो यह भी दिखाते हैं कि कौन सा ऐप कब कैमरा इस्तेमाल कर रहा है।

इसके अलावा, बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन जैसे फेस रिकॉग्निशन (जैसे आईफोन में फेस आईडी) भी कैमरे का उपयोग करता है। यह एक सिक्योर तरीका है फोन को अनलॉक करने का और पेमेंट्स को ऑथेंटिकेट करने का। यह सुनिश्चित करना कि ये फीचर्स सिक्योर रहें और कोई इनका गलत इस्तेमाल न कर पाए, Android iPhone सुरक्षा का एक क्रिटिकल कंपोनेंट है।

बैटरी और चार्जिंग

सिक्योरिटी फीचर्स, खासकर जो बैकग्राउंड में लगातार चलते हैं, उनका बैटरी लाइफ पर असर पड़ सकता है। गूगल स्कैम डिटेक्शन जैसे रियल-टाइम मॉनिटरिंग फीचर्स प्रोसेसर का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बैटरी थोड़ी ज़्यादा खर्च हो सकती है। लेकिन, कंपनियों की कोशिश रहती है कि इन फीचर्स को ऑप्टिमाइज किया जाए ताकि बैटरी पर कम से कम असर पड़े।

बैटरी हेल्थ भी एक सिक्योरिटी एस्पेक्ट है। पुरानी या खराब बैटरी वाले फोन्स ज़्यादा वल्नरेबल हो सकते हैं, क्योंकि वे लगातार अपडेट्स या सिक्योरिटी स्कैन्स को सही से मैनेज नहीं कर पाते। फ़ास्ट चार्जिंग या वायरलेस चार्जिंग के दौरान भी सिक्योरिटी का ध्यान रखना ज़रूरी है, खासकर पब्लिक चार्जिंग पॉइंट्स पर, जहाँ “जूइस जैकिंग” जैसे मोबाइल स्कैम का खतरा रहता है। हमेशा अपने ऑथेंटिक चार्जर का इस्तेमाल करें और पब्लिक चार्जिंग स्टेशंस पर सावधानी बरतें।

ऑपरेटिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर

यह सेक्शन Android iPhone सुरक्षा की तुलना का मुख्य बिंदु है। जैसा कि रेफरेंस ड्राफ्ट में भी बताया गया है, गूगल का दावा है कि एंड्रॉयड इस मामले में एपल से बेहतर है। गूगल ने अपने AI-पावर्ड स्कैम डिटेक्शन फीचर के जरिए मोबाइल स्कैम को रोकने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। यह फीचर रियल-टाइम में धोखाधड़ी वाले कॉल्स और टेक्स्ट को पहचानता और ब्लॉक करता है। गूगल मैसेजेज़ हर महीने 500 मिलियन से ज़्यादा स्कैम टेक्स्ट को ब्लॉक करता है, जो एक बहुत बड़ा नंबर है!

एंड्रॉयड पर गूगल प्ले प्रोटेक्ट भी ऐप्स को स्कैन करता है ताकि मैलवेयर से बचा जा सके। वहीं, iOS अपने “वॉल्ड गार्डन” अप्रोच के लिए जाना जाता है, जहाँ हर ऐप को एपल के सख्त रिव्यु प्रोसेस से गुज़रना पड़ता है। इससे सिक्योरिटी काफी टाइट हो जाती है। हालांकि, एपल भी अब iOS26 में नए फीचर्स ला रहा है, जिससे यूजर्स कॉल्स स्क्रीन करके स्कैमर्स की जांच कर सकेंगे। दोनों ही ऑपरेटिंग सिस्टम लगातार सिक्योरिटी पैच और अपडेट्स जारी करते हैं, जो आपके फोन को नए खतरों से बचाते हैं। अपने फोन को हमेशा अपडेटेड रखना बहुत ज़रूरी है!

प्राइस इन इंडिया, यूएसए और दुबई

अब बात करते हैं प्राइस की। यहाँ हम सीधे-सीधे किसी फोन का प्राइस नहीं देख रहे, बल्कि सिक्योरिटी की “कीमत” क्या होती है, उस पर गौर कर रहे हैं। कई बार लोग आईफोन को सिर्फ उसके स्टेटस सिंबल के लिए नहीं, बल्कि उसकी perceived सिक्योरिटी के लिए भी खरीदते हैं। उनका मानना होता है कि एपल का इकोसिस्टम ज़्यादा सुरक्षित है, और इस “सुरक्षा” के लिए वे एक प्रीमियम प्राइस देने को तैयार होते हैं।

वहीं, एंड्रॉयड फोंस की रेंज काफी वाइड है। बजट फोंस से लेकर प्रीमियम फोंस तक, सब उपलब्ध हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि सस्ते एंड्रॉयड फोंस असुरक्षित होते हैं, बल्कि यह है कि हर प्राइस सेगमेंट में मोबाइल स्कैम से बचने के लिए यूजर्स को अवेयर रहना बहुत ज़रूरी है। गूगल स्कैम डिटेक्शन जैसे फीचर्स एंड्रॉयड के हर फोन पर उपलब्ध हो सकते हैं, चाहे वह इंडिया में 10,000 रुपये का फोन हो या यूएसए या दुबई में 1000 डॉलर का। असली कीमत तो तब चुकानी पड़ती है जब आप किसी स्कैम का शिकार हो जाते हैं। एक छोटा-सा मोबाइल स्कैम आपको हजारों, लाखों रुपये का नुकसान करा सकता है। यह कीमत किसी भी फोन के प्राइस से कहीं ज़्यादा हो सकती है।

निष्कर्ष

तो दोस्तों, जैसा कि गूगल ने दावा किया है, मोबाइल स्कैम रोकने में एंड्रॉयड ने कुछ जगहों पर एपल से बढ़त हासिल कर ली है, खासकर अपने नए एआई-पावर्ड स्कैम डिटेक्शन और मैसेज ब्लॉकिंग फीचर्स के साथ। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आईफोन यूज़र्स पूरी तरह सुरक्षित हैं या एंड्रॉयड यूज़र्स को लापरवाही बरतनी चाहिए। Android iPhone सुरक्षा दोनों ही प्लेटफार्म के लिए एक ऑनगोइंग जर्नी है, जहां कंपनियां लगातार नए खतरों से निपटने के लिए काम कर रही हैं।

सबसे बड़ी सिक्योरिटी आपके हाथ में है – अलर्ट रहना, किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करना, स्ट्रांग पासवर्ड का इस्तेमाल करना और अपने फोन को हमेशा अपडेटेड रखना। चाहे आप एंड्रॉयड चलाएं या आईफोन, जागरूक रहना ही सबसे बड़ी सुरक्षा है। मुझे उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी! आपको क्या लगता है, कौन सा ऑपरेटिंग सिस्टम सिक्योरिटी में आगे है? नीचे कमेंट्स में ज़रूर बताएं और इस ब्लॉग पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें!

Gaurav Srivastava

My name is Gaurav Srivastava, and I work as a content writer with a deep passion for writing. With over 4 years of blogging experience, I enjoy sharing knowledge that inspires others and helps them grow as successful bloggers. Through Bahraich News, my aim is to provide valuable information, motivate aspiring writers, and guide readers toward building a bright future in blogging.

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